ओरहन - राजीव उपाध्याय

गड़हा के पानी 
नाद में भरि आइल बा
मोथा, भर खेत अंखुआइल बा
दूबि कोठा पर चढि आइल बा
सीढी टूटि छितराइल बा
के ओरिची ओरचन अब
कि बाध लटक 
माटी में लसराइल बा॥

चारू ओर इहे हाल बा
नगर-नगर बउराइल बा
घर चानी बनि जाओ
दुआर पर देवाल जोड़ाओ
अउरी बांचल खुंचल जेवन बा
घूरा पर सरि जाओ
एतने बस जिनगी के दउड़
बापो-माई अघाइल बा॥

ओरहन सभकर इहे बा
कि हित-नात सभ बिलइलें
कि नेवता ले बस हितई बा
पोखरा सूखि गइल गँउवाँ के
पलस्तर झरि गइल इनरा के
बाकिर एक ढेकूल 
ना केहू पानी खींचे
कि बगइचा ले उजराइल बा।
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लेखक परिचय:-

पता: बाराबाँध, बलिया, उत्तर प्रदेश 
लेखन: साहित्य (कविता व कहानी) एवं अर्थशास्त्र 
संपर्कसूत्र: rajeevupadhyay@live.in 
दूरभाष संख्या: 7503628659 
ब्लाग: http://www.swayamshunya.in/
अंक - 91 (02 अगस्त 2016)

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