मन काँहे पछताला - राजीव उपाध्याय

मन काँहे पछताला बहुते
काँहे ओढ़ेला दूसाला।
रहिया-रहिया खोजे एगो
सूरत सुघर निराला॥

घूमे ओरीयानी, खेते, बन
जपे जाला सिवाला।
गीने सभकर बतिया पर
बतिया सगरी भूलाला॥

मारऽ–मारऽ कहि के
आपन दिन बितावेला।
कइके जियान सभ जेवनार
हिस कइके भूलाला॥
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लेखक परिचय:-

नाम: राजीव उपाध्याय
पता: बाराबाँध, बलिया, उत्तर प्रदेश
लेखन: साहित्य (कविता व कहानी) एवं अर्थशास्त्र
संपर्कसूत्र: rajeevupadhyay@live.in
दूरभाष संख्या: 7503628659
ब्लाग: http://www.swayamshunya.in/
फेसबुक: https://www.facebook.com/rajeevpens
अंक - 87 (5 जुलाई 2016)

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