लुटा दिहल परान जे - प्रसिद्ध नारायण सिंह

लुटा दिहल परान जे, मिटा दिहल निसान जे।
चढ़ा के सीस देस के, बना दिहल महान जे॥
जने-जने जगा गइल, नया नसा पिला गइल।
जला-जला सरीर के, स्वदेस जगमगा गइल॥


पहाड़ तोड़ि-तोड़ि के, नदी के धारि मोड़ि के।
सुघर डहरि बना गइल, जे काँट-कूँस कोड़ि के॥
कराल क्रान्ति ला गइल, ब्रिटेन के हिला गइल।
बिहँसि के देस के धजा, गगन में जे खिला गइल॥

अमर समर में सो गइल, कलंक-पंक धो गइल।
लहू के बूँद-बूँद में, विजय के बीज बो गइल॥।
ऊ बीज मुस्करा उठल, पनपि के गहगहा उठल।
विनास का विकास में, बसंत लहलहा उठल॥

कली-कली फूला गइलि, गली-गली सुहा गइलि।
सहीद का समाधि पर, स्वतंत्रता लुभा गइलि॥
चुनल सुमन सँवारि के, सनेह-दीप बारि के।
चलीं, उतारे आरती, सहीद का मजारि के॥
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प्रसिद्ध नारायण सिंह
अंक - 85 (21 जून 2016)

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