दोहा - रामरक्षा मिश्र विमल

के आपन के आन बा, बहुत कठिन पहचान।
आफति तक जे साथ दे, ओकरे आपन जान।।1।।

झट दे निरनय जनि लिहीं, घिन आवे भा खीस।
झुक जाए कब का पता, कट जाए कब सीस।।2।।

बहल हवा बहकल जिया, मन में उमड़ल प्यार।
जब उनुका मुसकान पर, बिखरल केस लिलार।।3।।

गलती अँखियन के रहल, तन भोगल परिनाम।
संगति राउर हर कदम, करी सदा बदनाम।।4।।

नेतन माथे जे मढ़े, धरती के सभ दोस।
अइसन बुधिजीवी जिए, धरती के अफ सोस।।5।।

गलत आदमी पद सही, सही गलत असथान।
जहॉं बहुलता में मिले, ओकर कवन ठिकान।।6।।

कल में जबसे आ लगल, कलम भइल बेकार।
कंप्यूटर के कला पर, खुश होता संसार।।7।।

दोसरा से डर के जिए, ऊ नर कीट समान।
अपना से डर के जिए, से सच्चा इनसान।।8।।
-----------------------------------

लेखक परिचय:-

नाम: डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल
जन्म: बड़कागाँव, सबल पट्टी, सिमरी
बक्सर, बिहार
जनम दिन: 28 फरवरी, 1962
पिता: स्व. आचार्य काशीनाथ मिश्र
संप्रति: स्नातकोत्तर हिंदी अध्यापक, केन्द्रीय विद्यालय
संपादन: संसृति
रचना: कौन सा उपहार दूँ प्रिय अउरी फगुआ के पहरा
ई-मेल: ramraksha.mishra@yahoo.com
अंक - 84 (14 जून 2016)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मैना: भोजपुरी साहित्य क उड़ान (Maina Bhojpuri Magazine) Designed by Templateism.com Copyright © 2014

मैना: भोजपुरी लोकसाहित्य Copyright © 2014. Bim के थीम चित्र. Blogger द्वारा संचालित.