1.
उहाँ का रोज
गवार्इंले जिनिगी
जिये खातिर।
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2.
जिये के चाहीं
जिनिगी अमिरित
पिये के चाहीं।
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उहाँ का रोज
गवार्इंले जिनिगी
जिये खातिर।
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2.
जिये के चाहीं
जिनिगी अमिरित
पिये के चाहीं।
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3.
जियल ठीक
जहरो जिनिगी के
पियल ठीक।
-------------
4.
मुसकरा के
जियेला जिंदादिल
हर पल के।
-------------
5.
जीयत चलीं
बहार पतझड़
लागले रही।
-------------
6.
टुटबे करी
जिनिगी खेलौना हऽ
कबो ना कबो।
-------------
7.
जागीं जी जागीं
कब तक सूतबि
जिनिगी छोट।
-------------
8.
काटत बानी
हर पल कसहूँ
जीये खातिर।
-------------
9.
ढोवऽ मत
पहाड़ का माफिक
जिनिगी हटे।
-------------
10.
सासु भइली
गवनहरी बहू
भर जिनिगी।
-------------
11.
जीती भा हारीं
बाकी खेलीं खेलाईं
ईहे जिनिगी।
-------------
12.
जिनिगी माने
ए कोठिला के धान
ओ कोठिला में।
-------------
13.
जिनिगी माने
कापी पेन सियाही
चलत रहीं।
जियल ठीक
जहरो जिनिगी के
पियल ठीक।
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4.
मुसकरा के
जियेला जिंदादिल
हर पल के।
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5.
जीयत चलीं
बहार पतझड़
लागले रही।
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6.
टुटबे करी
जिनिगी खेलौना हऽ
कबो ना कबो।
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7.
जागीं जी जागीं
कब तक सूतबि
जिनिगी छोट।
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8.
काटत बानी
हर पल कसहूँ
जीये खातिर।
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9.
ढोवऽ मत
पहाड़ का माफिक
जिनिगी हटे।
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10.
सासु भइली
गवनहरी बहू
भर जिनिगी।
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11.
जीती भा हारीं
बाकी खेलीं खेलाईं
ईहे जिनिगी।
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12.
जिनिगी माने
ए कोठिला के धान
ओ कोठिला में।
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13.
जिनिगी माने
कापी पेन सियाही
चलत रहीं।
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लेखक परिचय:-
नाम: डॉ. रामरक्षा मिश्र विमलजन्म: बड़कागाँव, सबल पट्टी, सिमरी
बक्सर, बिहार
जनम दिन: 28 फरवरी, 1962
पिता: स्व. आचार्य काशीनाथ मिश्र
संप्रति: स्नातकोत्तर हिंदी अध्यापक, केन्द्रीय विद्यालय
संपादन: संसृति
रचना: कौन सा उपहार दूँ प्रिय अउरी फगुआ के पहरा
ई-मेल: ramraksha.mishra@yahoo.com
अंक - 85 (21 जून 2016)
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