प्रयास - केशव मोहन पाण्डेय

जिनगी ज़हर ना ह
हहरावेले
घहरावेले
तबो
कहर ना ह।
जिनगी
राग ह
रंग ह
एह के
आपन-आपन ढंग ह
ई कई बेर बुझाले
कि बिना बिआहे के बाजा ह
छन में फकीर ह ई
छन में
चक्रवर्ती राजा ह।
उठा-पटक जिनगी में
चलते रही
जे चली ना
ऊ त
हाथ मलते रही
ई त सभे जानेला
कि पानी बही ना
त गड़हा में ठहर के
मर जाई
बबुआ
सुतला से कुछ ना मिली
सुतले रहब
आ भइसीया
सगरो खेत चर जाई
उठs
प्रयास करs
जाँगर भर जोर लगाव
जे आगे बा
ओहसे होड़ लगाव
कवनो अनुग्रह-अनुदान के
मुँह मत देखs
कर्म के जोत जराव,
कर्म होई
त फल मिलबे करी
सिद्ध क के देखाव,
निश्चित बा
तहरा मन के फूल
खिलबे करी।
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अंक - 81 (24 मई 2016)

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