जनसंगीत - जनकवि भोला

हम चहनी, चाहींला, चाहत बानी
कबहूं तहरे ही खातिर मरत बानी॥

तोहरे पिरितिया के याद में जिनिगिया
निंदवा में अइतू सुनइती हम गीतिया॥

कहां चल जालू निंदवा में खोजत बानी
कबहूं तहरे ही खातिर मरत बानी॥

दिन रात के बाड़ू हो तू ही दरपनवा
जवरे पिरितिया के गाइला हो गनवा॥

काहे जनबू ना जान जनावत बानी
कबहूं तहरे ही खातिर मरत बानी॥

ना देखती कउनो हम कबो सपनवा
शहीदन के हउवे ई प्यारा जहनव॥

अब कउनो ना डर बा जानत बानी
कबहूं तहरे ही खातिर मरत बानी॥
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अंक - 14 (10 फरवरी 2015)

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