सुराज सैर करत बा - धरीक्षण मिश्र

आइल सुराज बा सही सुनात बात कान में ।
न आँखि से देखात बा न आवेत बा ध्यान में ।।
सुराज ना देखात बा जवार में पथार में ।
न ढाब ढाठ भाठ में न बाँगरे कछार में ।।
न खेत में न पेट में न बेर्हि में बखार में ।
न नोट में न कोट में न शौक में सिंगार में ।।
न बोर्ड में बाजार में न मिल में रोडवेज में ।
न श्राद्ध में बिहाय में न दान में दहेज में ।।
अकाल अन्न वस्त्र के सवार बा कपार पर ।
सुराज सैर करत बा मिनिस्टरन की कार पर ।।1।।

बनत बिकास जोजने त भोजने अजूर बा ।
अनाज भले न किन्‍तु नाज त जरूर बा ।।
गरूर दिल में बा मगर दिमाग में न लूर बा ।
त दाब हाँक उठि गइल बिला गइल सहूर बा ।।
गुरू डरत बा छात्र से मिल मालिको मजदूर से ।
पटवारियो सब पैंतरा लगा रहल बा दूर से ।।
त माँग पौन पूत पोंछि का समान डींग के ।
अंगद चरन के अनुकरन परन बा चरन सिंह के ।।
सद्भाव के अभाव बा निर्णय बा जीत हार पर ।
सुराज जगमगात बा अनशन तथा तकरार पर ।।
सुराज सैर करतब बा मिनिस्टरन की कार पर ।।2।।

त जो जना के जात लोग जोजना रचत रही ।
देहात में दियात मत न बात बा सही सही ।।
त जेल जे गइल रहे ऊ आजु खुलि के खात बा ।
जीए के जाहिरा अलम्म जोहि के दियात बा ।।
त रोज नया जोजना के गोजना गोंजात बा ।
आ जोजना के जरि इहे बा सोझ ना कहात बा ।।
आ खोज ना बा के कहाँ बा लाख पर हजार पर ।।
सुराज सुख सुलभ सजी सँयोग पर सुतार पर ।।
सुराज सैर करतब बा मिनिस्टरन की कार पर ।।3।।

जने जने का जोजना बना बना तेयार बा ।
ये जोजना में ओज ना बा किन्तु सब असार बा ।।
ई जोजना चले के यत्न डालरे उधार बा ।
जो एक जोजना चला के होत कहीं कार बा ।।
त "बन्द करो बन्द बस" आवत तुरन्त तार बा ।
दिल्ली दउलताबाद के दसा दुसह हमार बा ।।
त जोजने जने का युक्ति में सभे जुझार बा ।
ए जोजना के जोजने भरे से नमस्कार बा ।।
रोवल न ठीक बा मगर हँसी कवन अधार पर ।
सुराज के न बस चले बलेक का बजार पर ।।
सुराज सैर करत बा मिनिस्टरन की कार पर ।।4।।

बा एकता अखण्ड अब रियासतन का लोप से ।
बा डर विशेष शेष प्रान्त बाद का प्रकोप से ।।
गुरुमंत्र हिन्द लेत बा अमेरिका यूरोप से ।
भागत फिरत बा देवते डेरा के अब अछोप से ।।
डरत बा लाल पाग आज कल सफेद टोप से ।
शासन के शुरूआत बा अनुशासने का लोप से ।।
आ कोड बिल में हो गइल जोरू जबर भतार पर ।
सुराज जियत खात बा बिदेश में प्रचार पर ।।
सुराज सैर करत बा मिनिस्टरन की कार पर ।।5।।

राजा रईस का जगह नेता सबे पुजात बा ।
हटा के जमींदार कुर्कमीन अब रखात बा ।।
त बुद्धि का अर्जीण से केहू कहीं सनकि गइल ।
पदलोभ का प्रभाव से प्रान्तीयता पनकि गइल ।।
त यूनियन बना बना सब बर्ग बा बरना गइल ।
अध्यापको समाज जा के लखनऊ धरना गइल ।।
मिटा के जमींदार भूमिधर के सृष्टि होत बा ।
आ सीरदार के भइल पहिले से अधिक पोत बा ।।
आ बर्ग नव बिपत्ति बा गरीब काश्तकार पर ।
सुराज सैर करत बा मिनिस्टरन की कार पर ।।6।।

गजर बजर भइल सजी बजर परी बुझात बा ।
नजर गइल कहाँ अगर जो दस गुना मंगात बा ।।
संख्या बेकार व्यक्ति के जगह जगह अपार बा ।
सुराग एक नौकरी के देत जो अखबार बा ।।
जूटत हजार लोग बा माछी मनों खँखार पर ।
आ योग्यता के मुहर बा भाई भतीजा सार पर ।।
बैताल बा देखात अबे डार पर के डार पर ।
सुराज बा टिकल विशेष भुखमरी पेटजार पर ।।
सदस्य फोर फार जोर जार की सरकार पर ।
चुनाव खर्च दान में समर्थ साहुकार पर ।।
सरपंच का दुआर ब्लाक से मिलल उधार पर ।
काँगरेस का हड़वार पर गान्धी जी का जयकार पर ।।
सुराज सैर करत बा मिनिस्टरन की कार पर ।।7।।
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धरीक्षण मिश्र












अंक - 82 (31 मई 2016)

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