अमौसा का मेला - कैलाश गौतम

भक्ति के रंग में रंगल गाँव देखऽ,
धरम में, करम में, सनल गाँव देखऽ।
अगल में, बगल में सगल गाँव देखऽ,
अमौसा नहाये चलल गाँव देखऽ॥


एहू हाथे झोरा, ओहू हाथे झोरा,
कान्ही पऽ बोरी, कपारे पऽ बोरा।
कमरी में केहू, कथरी में केहू,
रजाई में केहू, दुलाई में केहू॥

आजी रँगावत हईं गोड़ देखऽ,
हँसत हँउवे बब्बा, तनी जोड़ देखऽ।
घुंघटवे से पूछे पतोहिया कि अईया,
गठरिया में अब का रखाई बतईहा॥

एहर हउवे लुग्गा, ओहर हउवे पूड़ी,
रामायण का लग्गे हऽ मँड़ुआ के ढूँढ़ी।
चाउर आ चिउरा किनारे के ओरी,
नयका चपलवा अचारे का ओरी॥
अमौसा के मेला, अमौसा के मेला॥

मचल हउवे हल्ला, चढ़ावऽ उतारऽ,
खचाखच भरल रेलगाड़ी निहारऽ।
एहर गुर्री-गुर्रा, ओहर लोली-लोला,
आ बीचे में हउव शराफत से बोलऽ॥


चपायल ह केहु, दबायल हऽ केहू,
आ घंटन से उपर टँगायल हऽ केहू।
केहू हक्का-बक्का, केहू लाल-पियर,
केहू फनफनात हउवे कीरा के नियर॥


बप्पा रे बप्पा, आ दईया रे दईया
तनी हम्मे आगे बढ़े देतऽ भईया।
मगर केहू दर से टसकले ना टसके
टसकले ना टसके, मसकले ना मसके॥


छिड़ल ह हिताई-नताई के चरचा
पढ़ाई-लिखाई-कमाई के चरचा।
दरोगा के बदली करावत हऽ केहू
लग्गी से पानी पियावत हऽ केहू॥
अमौसा के मेला, अमौसा के मेला॥

गुलब्बन के दुलहिन चलै धीरे-धीरे
भरल नाव जइसे नदी तीरे-तीरे।
सजल देहि जइसे हो गवने के डोली
हँसी हौ बताशा शहद हउवे बोली॥

देखैली ठोकर बचावेली धक्का
मने मन छोहारा, मने मन मुनक्का।
फुटेहरा नियरा मुस्किया मुस्किया के
निहारे ली मेला चिहा के चिहा के॥

सबै देवी देवता मनावत चलेली
नरियर प नरियर चढ़ावत चलेली।
किनारे से देखैं, इशारे से बोलैं
कहीं गाँठ जोड़ें कहीं गाँठ खोलैं॥

बड़े मन से मन्दिर में दर्शन करेली
आ दुधै से शिवजी के अरघा भरेली।
चढ़ावें चढ़ावा आ कोठर शिवाला
छूवल चाहें पिण्डी लटक नाहीं जाला॥
अमौसा के मेला, अमौसा के मेला॥

एही में चम्पा-चमेली भेंटइली
बचपन के दुनो सहेली भेंटइली।
ई आपन सुनावें, ऊ आपन सुनावें
दुनो आपन गहना-गदेला गिनावें॥

असो का बनवलू, असो का गढ़वलू
तू जीजा कऽ फोटो ना अबतक पठवलू।
ना ई उन्हें रोकैं ना ऊ इन्हैं टोकैं
दुनो अपना दुलहा के तारीफ झोंकैं॥

हमैं अपना सासु के पुतरी तूं जानऽ
हमैं ससुरजी के पगड़ी तूं जानऽ।
शहरियो में पक्की देहतियो में पक्की
चलत हउवे टेम्पू, चलत हउवे चक्की॥

मने मन जरै आ गड़ै लगली दुन्नो
भया तू तू मैं मैं, लड़ै लगली दुन्नो।
साधु छुड़ावैं सिपाही छुड़ावैं
हलवाई जइसे कड़ाही छुड़ावै॥
अमौसा के मेला, अमौसा के मेला॥

कलउता के माई के झोरा हेराइल
बुद्धू के बड़का कटोरा हेराइल।
टिकुलिया के माई टिकुलिया के जोहै
बिजुरिया के माई बिजुरिया के जोहै॥

मचल हउवै मेला में सगरो ढुढ़ाई
चमेला के बाबू चमेला के माई।
गुलबिया सभत्तर निहारत चलेले
मुरहुआ मुरहुआ पुकारत चलेले॥

छोटकी बिटउआ के मारत चलेले
बिटिइउवे प गुस्सा उतारत चलेले।
गोबरधन के सरहज किनारे भेंटइली
गोबरधन का संगे पँउर के नहइली॥

घरे चलतऽ पाहुन दही गुड़ खिआइत
भतीजा भयल हौ भतीजा देखाइत।
उहैं फेंक गठरी, परइले गोबरधन
ना फेर-फेर देखइले धरइले गोबरधन॥
अमौसा के मेला, अमौसा के मेला॥

केहू साल, सुइटर, दुसाला मोलावे
केहू बस अटैची के ताला मोलावे।
केहू चायदानी पियाला मोलावे
सुठौरा के केहू मसाला मोलावे॥



नुमाइश में जा के बदल गइली भउजी
भईया से आगे निकल गइली भउजी।
आयल हिंडोला मचल गइली भउजी
देखते डरामा उछल गइली भउजी॥

भईया बेचारु जोड़त हउवें खरचा
भुलइले ना भूले पकौड़ी के मरीचा।
बिहाने कचहरी कचहरी के चिंता
बहिनिया के गौना मसहरी के चिंता॥

फटल हउवे कुरता टूटल हउवे जूता
खलीका में खाली किराया के बूता।
तबो पीछे पीछे चलल जात हउवें
गदौरी में सुरती मलत जात हउवें॥
अमौसा के मेला, अमौसा के मेला॥ 
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लेखक परिचय:-

जनम: 8 जनवरी 1944
देहावसान: 9 दिसंबर 2006
जनम थान: वाराणसी (चंदौली)
शिक्षा: एम.ए. बी. एड.
रचना: सीली माचिस की तीलियाँ, जोड़ा ताल, तीन चौथाई आन्हर, सिर पर आग
सम्मान: शारदा सम्मान, महादेवी वर्मा सम्मान, राहुल सांकृत्यायन सम्मान, लोक भूषण सम्मान, सुमित्रानन्दन पंत सम्मान, ऋतुराज सम्मान

अंक - 82 (31 मई 2016)

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