गमछा पाड़े - 6 - अभय कृष्ण त्रिपाठी "विष्णु"

सब केहू अचरज से गमछे पाड़े के देखत रहे कि अब का गुल खिले वाला बा. बाकि ममता से ना रहल गइल आ ऊ हाली से आपन सवाल कइलस जइसे ओकरा साँच जाने के बड़ा बेचैनी होखो.
"आपके कहे क मतलब का हव गमछा चच्चा..?"
"बिटिया, हम त एतने कहे चाहत बानी कि बहिना झूठ बोलत बाड़ी. काहे से इनकरा जइसन शरीर के औरत महादेव बाबू के लाश के खूँटी पर टाँग भले दे,साड़ी पहिनले पहिन ई खिड़की से बहिरा सही सलामत जईये नइखी सकत. मतलब ई कि या त तू दुनो जाना के कतल से कवनो सम्बन्ध नइखे भा दुनो जाना एह कतल के बराबर के भागीदार बाड़न जा. काहे से कि तोहरा जइसन शरीर साड़ी में सही सलामत ई खिड़की से बहरी ना जा सकेला. अब सचमुच में असलियत का बा एकर फैसला पुलिस खुद कर ली जेकरा के बोलावे खातिर केहु के तकलीफ करे के दरकार नइखे काहे से कि पुलिस बहरी से खुद ई तमाशा देख रहल बिया." एतना कहला के बाद पाड़ेजी इन्सपेक्टर के आवाज दिहले त अगिले पल में कमरा में एगो इन्सपेक्टर क साथे दूगो सिपाही आ एगो महिला सिपाही भीतरो आ गइल.
"गमछा चच्चा ई सब...?" ममता पुछलस त पाड़ेजी फिर से कहे शुरु कइले...
"ई लोग के हम बोलवले बानी. बाकि मोहन आ बहिना के पुलिस में भेजे से पहिले हम ऊ बात जरुर बतायेब कि मोहन के राज के बारे में जवन बात पुलिस के ना मालूम भइल ऊ हमरा कइसे मालूम हो गइल. अतना कह के पाड़ेजी कुछ सोचे लगले आ फेर कहे लगले.. केहु के याद होखे भा ना बाकि जवना दिन पईसा क लेके महादेव बाबू अउरी मोहन मे झगड़ा भइल रहे ओह दिना हम महादेव बाबू से मिले खातिर एहिजगे आइल रहीं. संयोग से महादेव बाबू के मौत वाला रात में हम मोहन बबुआ के चाह के दुकान में केहू के ओतने रूपया देत देखले रहीं. बस ईहे दूगो संजोग जोड़ के हम जवन कहानी बनवलीं ऊ निशाने पर लाग गइल. बन्द कमरा से बहरी जाये के राज जानल कउनो बड़ बात ना रहे. कमरा के खिड़की के कुंडी देखते हम बूझ गइलीं कि का भइल होखी.एतना कहला क बाद पाड़ेजी इंस्पेक्टर से मुखातिब भइले.. भाई सिंह साहब, सँभाली अपना मुजरिम लोग के. हमरा पूरा भरोसा बा कि एगुड़े दिन में पूरा कहानी बाहर आ जाई."
पाड़ेजी के बात सुन के पुलिस आपन काम करे लागल. ममता के उपर बुआजी के आ मोहन के रोआ रोहट के कवनो असन ना भइल अउर दस मिनिट का भितरे पुलिस आपन काम कर के चल गइल आ साथे साथे मोहन अउर बुओजी के लेले गइल.
"अच्छा बिटिया, अब हमहूं चलब. जब पूरा कहानी बाहर आ जाई त फेर भेंट होखी." पुलिस के गइला क बाद पाड़हूंजी अपना राह चले लगले. फेर तनिका रुक के राजन से कुछ पूछे चहले...
"जवाईं बाबू, बुरा ना मानी त हम कुछ पूछे चाहेब?
"जी जरुर." राजन के चेहरा बतावत रहे कि ऊ थोड़ा परेशानी में बा कि आखिर अब पाड़ेजी का पूछीहें.
"अब त वियाह खातिर एक साल रुके के ना नू पड़ी ?"
ई सवाल सुन के ममता अउर राजन दुनो जाना लजा गइल आ पाड़ेजी मुसुकात बहरी चल गइले.
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पाड़ेजी अपना आफिस मे चाय पियत कुछ सोचे में व्यस्त रहले. कुछ एतना कि पंडिताईन ऊनकरा लगुवे बईठल रहली बाकि पाड़ेजी के उनकर कवनो ध्याने ना रहे. आखिर में पंडिताईन से ना रहल गइल आ बोलिये पड़ली...
"बिलाई क भागे सिकहर का टूटल रउआ त सोझे आसमाने पर जाके बईठ गइल बानी. मत भूलीं, अबले ना तोहार बहिना जुरुम कबूलले बाड़ी ना ही उ छँवड़ा.(कुछ याद करत).. का नाम हऽ ओकर..?
"मोहन." पाड़ेजी चाय के चुस्की लेत कहले आ फेर पंडिताईन क तरफ देख के कहे शुरु कइले..
"सिकहर केकरा भागे टूटी अभी तय नइखे भइल पंडिताईन!"
"का मतलब..? अब चऊँके के बारी पंडिताईन के रहे.
"मतलब ई कि अबहीं असली कातिल सामने आना बाकी बा." पाड़ेजी अपना भारी आवाज में कहले त पंडिताईनो का चेहरा पर अचरज के सीमा ना रहे. बाकि पंडिताईन कुछ कहें भा सवाल करें ओकरा पहिलही पाड़ेजी कहे शुरु कईले.. "वइसे त हमरा के ई बात तबले ना बतावे के चाहत रहे जबले कि असली हत्यारा पुलिस के गिरफ्त में ना आ जाव बाककि काहे से कि हम कातिल क बारे में जान चुकल बानी एहि से एतना बता दिहली हँ." एतना सुन के पंडिताईन पाड़ेजी के घुर घुर के देखे लगली. ई देख के पाड़ेजी फेर कहल शुरु कइले..
"अइसन बिलार नियर आँख फाड़ क देखे के दरकार नइखे. भुला गईलू कि हम ठलुआ के कवनो काम से भेजले बानी? असली कातिल तबहीं सामने आई जब ऊ आपन काम ठीक से करके वापस आ जाई. शायद अजुवे आ ना तऽ काल्हु."
"चलीं अब एतना अउर बता दीं कि के कातिल बा?" पंडिताईन जरत भुनात चेहरा लेके सवाल कईली त पाड़ेजी चुपचाप चाय के चुस्की लिहले अउरी लम्बा सांस छोड़त कहले..
"ट्रेड सीक्रेट बा. एकरा से ज्यादा जाने के बा त तनी इंतजार क ल. सब मालूम हो जाई."
"आखिर का बा सीक्रेट? गमछा पाड़े क दिमाग सचमुच चलत बा कि खाली दिमागी घोड़ा दउड़ावत बाड़े? का ठलुआ का जानकारी पर पाड़ेजी सचमुचे असली कातिल तक पहुँच पईहें कि बस ईहो सब खाली खयालिये पुलाव बन के रह जाई?"
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अभय कृष्ण त्रिपाठी "विष्णु"











अंक - 82 (31 मई 2016)

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