सुरेश कांटक जी के तीन गो चइता

देवरा नादानवा

चइत में सुतनी अँगनवा ए रामा, देवरा नादानवा
अचके में बनल जवानवा ए रामा, देवरा नादानवा 

नीनीया में भरमल मन ब उरा
हउवे देवर वा ना तनिको बुझा
कइलस अइसन घटनवा ए रामा, देवरा नदानवा

खुलली नजरिया त झटके परा
पियवा के भके रहनी देवरा लजा
पियवा के देहब का बयानवा ए रामा, देवरा नदानवा

कइसे कहब ऊ त नाहि पतिअइहें
धोबिया ज इसन दोष सीता के लगइहें
कइसे मनाइब उनुकर मनवा ए रामा, देवरा नदानवा

घर वा में छोड़ि नाहि ज इते बिदेसवा
नजर से देखीतीं ना सहितीं कलेसवा
नीक नाहि लागेला भवनवा ए रामा, देवरा नदानवा

कांटक बताइ दीह मोर मजबूरी
हमरा के छोड़ि गल करे मजदूरी
कइसन अकेल के जीवनवा ए रामा, देवरा नदानवा 

चइत महीनवा

पियवा बनवलें जोगीनिया ए रामा
चइत महीनवा

भोरे भोरे सँगवा में क इनी कटनिया
बोल बतियाइ के मेटवनी खटनिया
देखि देखि चहकल चननिया ए रामा ,
चइत महीनवा

गधबेर वा ले पिया बोझवा ढोववलें
दुलुकी में द उरा के गरमी छोड़वलें
चानामामा उगलें खरिहनिया ए रामा ,
चइत महीनवा

गतर गतर टूटे घर वा में अइनी
चुल्हवा के लेखा ज इसे मनवा धुँअइनी
चरखी भ ईल जिनगनिया ए रामा ,
चइत महीनवा

तवेला सरुजवा त छँहवा लुक ईनी
खरची के फिकिरी में सगरो पर ईनी
सपना देखावेले रयेनिया ए रामा ,
चइत महीनवा

कांटक जिनिगिया पसेनवा में डूबल
रेंगनी के कँटवा प नीनीया बा झूमल
जानतानी केकर ह करनिया ए रामा ,
चइत महीनवा

पिया नाहि अइलें

चढ़ल च इत उतपतिया ए रामा ,
पिया नाहि अइलें

महुआ फुल इले आमवा टिकुर इले
पिया नाहि अ इले त मन मुरझ इले
केकरा से कहीं दिल के बतिया ए रामा ,
पिया नाहि अइलें

कहलें सजनवा ना कबहूँ भुलाइब
तहरा के हियरा में हरदम बसाइब
बिसरे ना उनुकर सुरतिया ए रामा ,
पिया नाहि अइलें

रतिया ना आवे नीन दिनवा हेराइल
कहँवा दो मनवा के सुगना लुकाइल
बलमू क इलें बड़ घतिया ए रामा
पिया नाहि अइलें

जुगुत कवन करीं तनी ना बुझाला
फोनवो प बोलिया ना उनुकर सुनाला
धक धक धधकेला छतिया ए रामा ,
पिया नाहि अइलें

कांटक सजनवा के जलदी बोला द
तड़पत हियरा के सरधा पुरा द
लिखी लिखी भेजतानी पतिया ए रामा ,
पिया नाहि अइलें
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लेखक परिचयः

नाम: सुरेश कांटक
ग्राम-पोस्ट: कांट
भाया: ब्रह्मपुर 
जिला: बक्सर 
बिहार - ८०२११२

अंक - 76 (19 अप्रैल 2016)

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