भारत के सिरमउर ह सारण - जनकदेव जनक

सारण भारत के सबसे प्राचीनतम प्रशासनिक केंद्रन में एक रहल बा. चाहे मुगल काल होखे भा विलायती हुकूमत. आजादी के लड़ाई में भी एकर जोड़ नइखे. सब काल खंडन में सारण के परचम लहरात रहल बा. एकरा माटी में साहित्य, संस्कृति आ राजनीतिक के सोंधी महक बा. अबही तक देश के एगो राष्ट्रपति देश रत्न राजेंद्र प्रसाद आ सात गो ले बिहार के मुख मंतरी देले बा. जेमें महामाया प्रसाद सिन्हा, दारोगा प्रसाद राय, अब्दल गफुर, रामसुंदर दास, लालू प्रसाद यादव, राबरी देबी, वर्तमान में उपमुखमंत्री लालू-राबरी के बेटा तेजस्वी प्रसाद यादव बानीं. 
सारण के नामकरण 
सारंगा सकरा अरण्य, सारण्य अरथात हिरनन के जंगल. प्राचीन काल में ई क्षेत्र जंगल रहे. सारण नाम सारण्य के अपभ्रंश रूप हटे. सारन नाम के एगो गांव लहलाद पुर प्रखंड के मुख्यालय जनता बाजार से एक किलो मीटर पूरब में बा. जवन गंडकी नदी के किनारे आ महाराजगंज पैगंबरपुर मुख मारग पर बसल बा. इहां पहुंचे खातिर छपरा सिवान से बस के रास्ता भी बा. एही गांव के नाम पर सारण जिला के नाम पड़ल बा. 
सारन गांव में एगो मकदुम बाबा के मजार बा. उनकरा दरगाह में एको पथर के पिलर बा, जवन मुगल बादशाह हुमायूं के गाड़ल बाटे. इतिहासकारन के कहनाम बा कि बक्सर में शेरशाह सुरी आ हुंमायूं के सेना के बीच जम के लडाई भइल रहे, जेमे हुमायूं के हार हो गइल रहे. उ आपन जान बचा के बाचल कुछ लाव लश्कर के साथ सारन के जंगल में सरन लेले रहस आ अपना हाथी के बांधे खातिर पिलर गड़ले रहस. ऊ पिलर आज भी मकदुम बाबा के मजार के पास बाटे. जावना के देखे खातिर देश-विदेश से लोग आवत रहेला. सारन गांव के पछिम में लहलादपुर गांव बाटे. ओकरा सटले बाबा ढ़ोढ़ नाथ के विशाल मंदिर बा. जवन कबही अघोर पंथियन के मंदिर रहे. भारत पर चढ़ाई के समय मोहम्मद गोरी सारन पर भी चढ़ाई कइले रहे. एह मंदिर में भी लूट पाट आ तोड़ फोड़ भइल रहे. बाद में मंदिर के मरम्मत भइल. मंदिर के आगे वाला हिसा आजो मसजिदनुमा बाटे. 
खोदाई में प्राचीनतम अवशेष: सारन गांव के आस पास खोदाई में माटी आ पथर के बहुते मुरती, जांत, घड़ा, बरतन अदि मिलल बा. एहे गांव के स्व. मुंशी प्रसाद के खेत से पथर के धूप घड़ी मिलल. जवन उनकरा घरे राखल बा. एही गांव के गंगेश्वर प्रसाद के खेत से सात गो बड़का घड़ा निकल रहे, जवन फूट गइल. भेड़वनिया गांव में शालिग्राम के मुरती मिलल बा. जहां मंदिर बना के पूजा कइल जाता. गांव पंडितपुर बलुआ में भी एक जोड़ी जांत मिलल बा, जवन आज काल्ह के 10 गो मेहरारूअन के खींचला से ना खींचाई. ऊ जांत तपेश्वर राम मास्टर के इहां राखल बा. पुरातत्ववेता विभाग एह क्षेत्र के खोदाई करावे त बहुते दुरलभ चीज मिल सकता बा. 

सारण के प्राचीन इतिहास

सारण विशाल देश के अंग रहे. उहां के राजा सुमति रहस. जे अयोध्या से मिथिला जाये के बेड़ा भगवान श्री राम के रिविलगंज के नारायण देव मंदिर के पास सुआगत कइले रहस.हरिहर क्षेत्र सोनपुर के भी अध्यात्मिक इतिहास बा. एहिजा गज ग्राह के लड़ाई भइल रहे. गज के आतुर पुकार पर भगवान विष्णु के आवे के पड़ल रहे. ऊ अपना सुदरशन चक्र से मार के ग्राह के मोक्ष परदान कइले रहस. गंगा, गंडक के संगम पर विश्व प्रसिद्ध मेला सोनपुर लागेला. गंगा, सरयू के संगम पर चिरांद अवस्थित बा. जवन बौद्ध, हिंदू आ मुसलिम काल के उतार चढ़ाव देखले बा. एही स्थान पर राजा मयूरध्वज के राजधानी रहे. दहियावां छपरा में ऋषि दधिचि के आश्रम रहे. जे जन कलियान खातिर आपन हड्डी तकले दान क इले रहस. गोदना सेमरिया में गौतम ऋषि के आश्रम बा. जहवां तिनलोक सुंदरी अहिल्या के भगवान श्री राम श्रप मुक्त कइले रहीं. सिल्हौड़ी में शिलानाथ महादेव के मंदिर बा. जवन राजा शिलनिधि के राजधानी रहे. दिघवारा में राजा दक्ष के किला रहे. दिघवा दुबौली में धर्म राज के यज्ञ स्थली आ भीमाबांध में भगवान बुद्ध के ठहराव स्थल बा. कुशी नगर जाये के समय भगवान बुद्ध इहां आराम कइले रहीं. ओ घड़ी ओकर नाम भिक्षुकबांध रहे, जवना के अपभ्रंश नाम आज भीखाबांध पड़ल बा. भीखाबांध में आजो विशाल बट वृक्ष बाटे ,जवना के जड़ कहवां बा पता नइखे. हर जगे बड़ोह जमीन से सचल बा. बगल में भइया बहिनी के एगो मंदिर भी बाटे. थावे में सिंघासनी माई के मंदिर बा. जहवां रहसू भगत बाघ के दउरी करस. उनुकरे के सिंघासनी माई दरशन देले रही. आमी में अंबिका माई के मंदिर बा ,जहवां सती आपन आत्मदाह हवन कुंड में कइले रही. माघर में दुनियाराम बाबा के मंदिर बा, जे अंगरेजन से लोहा लेले रहीं. अपना क्रांतिकारी जीवन में विलायतियन के सामने कबहूं घुटना ना टेकनी. आइने अकबरी में सारण के बहुत विवरन बा. राजा टोडरमल जमीन के पैमाइस करवले रहस. ओह में सारण के भौगोलिक इकाई प्रकट भइल. गंगा ,गंडक आ घाघरा नदी से घिरल सारण कबहूं कौशल राज के अंग रहे. बौद्ध साहित्य से पता चलेला कि आरजन के आवे से पहिले इहां चेरो जाति के लेग रहत रहे. जब चीनी यात्री ह्वान सांग भारत आइल रहस, त गंगा के उत्तरी तट रिविलगंज के नारायण देव मंदिर भी गइल रहस. उहां राजा अशोक के स्तूप पिलर आ माटी के बरतन में राखल भगवान बुद्ध के भस्म देखले रहस. जवन एगो ब्राह्मण संइच के राखले रहस.कुंभ स्तूप दिघवारा में बाटे. ओह टाइम सारण गाजीपुर प्रशासकीय क्षेत्र में रहे. जवना के वरनन (761-762 एडी) पूर्व में मिलता. एकर जानकारी बेलवां के खोदाई में मिल अवशेष से पता चलत बा. मध्ययुग में सारण काफी विकसित आ प्रगति पर रहे. 

सारण पर विदेसीयन के हमला

चीनी सेनाध्यक्ष ह्वेन सेन (647 एडी) में सारण पर चढा़ई कइले रहे. जवना में इहां से सांस्कृतिक, आरथिक आ सामाजिक बेवस्था के तहस नहस हो गइल. गंगा, गंडक आ घाघरा के किनारे बसल सोनपुर से बरौली तक, गोपाल गंज से बैकुंठपुर तक, सारन से परसा तक के क्षेत्र सबसे जादे प्राचीन बाटे. 

सन् 1211 ई. से लेके 1226 ई तकले एह पर तर्क आ आफगानन के शासन रहे. एही दौर में बंगाल के गवरनल गयासुद्दीन सारण पर चढ़ाई कर कब्जा जमा लेहलस. एह क्षेत्र पर कब्जा करे खातिर नसरूद्दीन बोगरा खां आ ओकर बेटा मोजीउद्दीन केकेुबाद के बीच भी लड़ाई भइल रहे. आखिर में घाघरा नदी के किनारे बाप -बेटा में ताल मेल हो गइल. समसुद्दीन एलियास बंगाल के बादशाह रहे. उहो सारण पर डीठ गड़ले रहे. एक दिन चढ़ाई कके सारण के बंगाल में मिला लेहलस. बाद में जाैन पुर के राजा सन् 1397 ई. में चढ़ाई कर सारण आ चंपारण के अपना क्षेत्र में मिला लिहलें. ओकरा बाद जाैनपुर शासक के सारण पर 121 वर्ष शासन रहल. सन 1518 में बंगाल के राजा हुसैन शाह अपना पराक्रम से सारण के अपना अधीन कर लेहलस. सिकंदर लोदी भी अपना शासन काल में सारण के एगो जिला बनवले रहे. मियां हुसैन फारमुली के सारण आ चंपारण के जागीरदार बनवले रहे. ओह टाइम सारण क्षेत्र जल खेत के नाम जानल जाव. बंगाल के राजा हुसैन शाह के बेटा नसरत शाह सिकंदर लोदी के शासन काल में उनकरा दिल्ली के सरदार से बगावत कइले रहे. जवना के मुगल बादशाह बाबर ना पसंद कइलस आ सन 1529 ई. में नसरत शाह के हरा के शाह मोहम्मद मारूफ के जागीदार बनवलस. 45 बरीस बाद अकबर सन 1574 ई में बंगाल के अफगानी बादशाह दाउद खां के हरा देले रहे. ओह टाइम सारण बिहार के छह सरकारन में एक रहे. एकरा बाद भी काफी उथल पुथल भइल. 

डच्चन के शोरा फैक्ट्री

सारण के आरथिक विकास में डच्चन के जोगदान भुलावल ना जा सकेला. सन 1666 ई. में डच्चन के आगमन सारण में भइल रहे. उ लोग सारन, सारया सतुआ, माधर के साथ आउर कइइगो जगे शोरा के फैक्ट्री खोलले रहे लोग. जवना में नोनिया जाति के लोगन के रोजगार भरपुर मिलल रहे. सारण के शोरा विदेसन में काफी मशहूर रहे. 
सन 1726 ई में फकरूदौला जब बिहार के गवरनल बनल त ऊ सारण के शासक शेख अब्दुला के फौजी कारवाइ करके हटा दिहलस. साथ ही पटना के हुकूमत लेके सिवान चल गइल. उहां ऊ एगो माटी के किला बनवले रहे. कुछ बरीस बाद ऊ अवध भाग गइल. 

सारण में अंगरेजन के पहिला का फौज

सारण में अंगरेजन के पहिला का फौज सन 1757 ई. में आइल रहे. पलासी के मैदान में अंगरेजी फौज आ सिराजुदौला के बीच घमासान जुध भइल रहे. एह में सिराजुदौला के हार हो गइल. सन् 1762 ई में लॉर्ड क्लाइब बक्सर के मैदान में मीरकासिम आ सिराजुदौला के भी हरवले रहे. ओही समय हुस्सेपुर के युवराज फतह शाही अंगरेजन के कर देवल बंद कर देले रहलन .ओकरा बाद अंगरेज उनकरा के भी हरा देहलनस. फतह शाही के हार के बाद अंगरेज गोविंद राम के सिवान आ गोपालगंज में कर वसूले खातिर बहाल कइलस. बाद में जनता के सहयोग से फतह शाही सन 1772 ई में गोविंद राम के मार दिहलें रहस. तब अंगरेज फतह शाही के चचेरा भाई बसंत शाही के हुस्सेपुर के राजस्व किसान आ मीर जमाल के सरकारी राजस्व अधीक्षक बनवले रहे. फतह शाही चुप ना बइठलें, सन 1775 ई में ऊ बसंत शाही आ मीर जमाल के भी मार दिहलें. मउका मिलते दोनों के मार दिहलें. ओकरा बाद अंगरेज फतह शाही के पीछे हाथ धो के पड़ गइलें, बाकिर फतह शाही हाथे ना अइलें. बक्सर में जीत के बाद अंगरेजन के दबदबा दिल्ली तक बढ़ गइल रहे.

सन 1857 के जंग में भी सारण आगे

सन 1857 ई. में जब पूरा देश आजादी के जंग में कूदल रहे, ओह में सारण के जवान भी पीछे ना रहलें. आम जनता के बगावत पर उतर गइला से अंगरेजन के खजाना छपरा से पटना ले जाये के पड़ल रहे. सुगौली चंपारण में लोग अंगरेजन के चहेटे लागल. जनता के मदद से हिंदुस्तानी सिपाही सिवान के मजिस्ट्रेट पर चढ़ाई कइले रहस. एकर खबर मिलते छपरा के रेजिडेंट मजिस्ट्रेट दाना पुर भाग खड़ा भइलें. उग्र भीड़ गंगुआ आ दरौली अफीम कारखाना में भी जमके लूट पाट कइले रहे. अतने ना भीड़ गुठनी आउट पोस्ट पर भी हमला कइलस, बाकिर अंगरेज गोरखा सेने के मदद से विद्रोह के दबा दिहलस. तब आंदोलनकारी गुठनी के रास्ता गजियापुर आ बलिया के तरफ भाग गइले. जब जगदीश पुर के बाबू वीर कुंअर जंगे आजादी में कूदले ओह में सारण के वीर बांकुरन के भी भरपूर साथ रहे. सन 1866 ई.चंपारण भी सारण के हिस्सा बन गइल रहे. एही टाइम सारण में अंगरेजन एगों पुलिस चौकी आ फौजदारी अदालत कायम कइले रहे. सन 1779 में इहां ग्रीम नामक कलक्टर के बहाली भइल रहे. ओकरा खिलाफ हसन अली खां बगावत कइले रहस. ऊ जमादार ख्वाजा मोहम्मद नूर के परदादा रहस. जे सारण जिला में जमादार रहस. हसन अली मो सर अली के इमाम के पूरबज रहस. 1857 में ख्वाजा हसन अली सिवान के मजिस्ट्रेट रहस. जबकि 1834 ई में मिस्टर डब्ल्यू एफ मेवमोनर सारण के कलक्टर रहस. सन 1829 में सारण बिहार के क मिशनरियन में एगो रहे. जवना में तिरहुत, आरा आ सारण के सरकार रहे. 

सन 1887 ई. के दौरान देश में आजादी के लहर चलत रहे. भारतीय कांगरेस के स्थापना हो चुकल रहे. 1908 ई में बिहार प्रांतीय कांगरेस की स्थापना हरिहरक्षेत्र मेला सोनपुर में भइल. अध्यक्षता सरफराज हुसैन खां बहादुर कइले रहीं. ओह बैठक में मौलाना मजहरूल हक सहेब भी शामिल रहीं. सन 1992 में भरतीय कांगरेस के इजलास बिहारे में भइल रहे. सुआगत समिति अध्यक्ष मौलाना मजहरूलहक के बनावल गइल रहे. सन 1914 ई में गोलमेज कांफरेंस के भरतीय प्रतिनिधि के रूप में भी मौलाना मजहरूलहक साहेब शामिल रही.भारत में छिड़ल होम रूल के लड़ाई 1916 ई में बिहार से ब्रज किशोर प्रसाद आ मौलाना मजहरूल हक भी शामिल भइल रहीं.महात्मा गांधी जब चंपारण में किसानन के मदद से सत्याग्रह शुरू कइले रहीं, ओह में डॉ राजेंद्र प्रसाद, ब्रज किशोर प्रसाद आ मौलाना मजहरूलहक साथे रहीं. सन 1919 ई में खिलाफत आंदोलन शुरू भइल. सन 1920 में असहयोग आंदोलन शुरू भइल ,जवना के अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद रहीं. मौलाना मजहरूलहक साहेब के पुस्तक ‘ मदर इंडिया’विलायती शासन के नींव हिला देले रहे. सदाकत आश्रम , पटना बिहार विद्यापीठ आउर राष्ट्रीय महा विद्यालय के स्थापना में भी डॉ राजेंद्र प्रसाद, ब्रज किशोर प्रसाद आ मौलाना मजहरूलहक जोगदान रहल बा.

संदर्भ सूची 

  • सारण 1972 -73, पेज 5-6, जन संपर्क विभाग सारण
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लेखक परिचय:-


पता: सब्जी बगान लिलोरी पथरा झरिया,
पो. झरिया, जिला-धनबाद 

झारखंड (भारत) पिन 828111,

मो. 09431730244
अंक - 63 (19 जनवरी 2016)

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