केतना दिन तक चुप रहब s
अब बोल s रामधनी ;
तनी मुंह खोल s रामधनी !
तोहसे सपना छीन के
आपन नींन खरीदत बाटे ,
तोहरो फाटल - कटल हिया पर
नकली पेवन साटे ,
एह समाज के सधल नजर से
तोल s रामधनी !
तिरिछा कांटा धंसल पांव में
पीर हिया ले जाय ,
दरद उलीचत उमिर ओराइल
दुख ना कबो ओराय ,
कब ले ठहरल रहब s
अब कुछ डोल s रामधनी !
मन क s सकुचल आसमान में
कइसे चान उगी ,
जिनिगी क s मूअल माटी में
कइसे धान उगी ,
पुलके प्रान , हिया में अमरित
घोल s रामधनी !
थाकल पानी क s उदास रंग
असगुन रोज रचे,
दुख क s कठिन पहाड़ चढ़े भर
अथक उछाह बचे,
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