किसान - विश्वनाथ प्रसाद 'शैदा'

हो भइया! दुनिया कायम बा किसान से। हो भइया!

तुलसी बबा के रमायन में बाँचऽ, जाहिर बा सास्तर पुरान से।
भारत से पूछऽ, बेलायत, से पूछऽ, पूछऽ ना जर्मन जापान से।
साँचे किसान हवन, तपसी-तियागी मेहनत करेलें जिया जान से।



हो भइया! दुनिया कायम बा किसान से॥ हो भइया!
जेठो में जेकरा के खेते में पइबऽ, जब बरसेले आगि असमान से। 

झमकेला भादो जब चमकी बिजुलिया, हटिहें ना तनिको मचान से।
भइया, पूसो में माधो में खेते ऊ सुतिहें डरिहें ना सरदी-तूफान से। 
हो भइया! दुनिया कायम बा किसान से। हो भइया!


दुनिया के दाता किसाने हवन जा, पूछऽन पंडित महान से।
गरीब किसान आज भूखे मरत बा, करजा गुलामी-लगान से।
होई सुराजऽ किसान सुख पइहें, असरा रहे ई जुगान से
भारत के ‘शैदा‘ किसान सुख पावसु बिनवत बानी भगवान से
हो भइया! दुनिया कायम बा किसान से। हो भइया!
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- विश्वनाथ प्रसाद 'शैदा'







अंक - 58 (15 दिसम्बर 2015)

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