जागरण - गोरख पाण्डेय

बीतऽता अन्हरिया के जमनवा हो संघतिया
सबके जगा द
गंउवा जगा द आ सहरवा जगा द
छतिया में भरल अंगरवा जगा द
जइसे जरे पाप के खनवा हो संघतिया
सबके जगा द
तनवा जगा द आपन मनवा जगा द
अपने जंगरवा के धनवा जगा द
ठग देखि माँगे जगरनवा हो संघतिया
सबके जगा द
नेहिया के बन्हल परनवा जगा द
अँसुआ में डूबल सपनवा जगा द
मुकुती के मिल बा बयनवा हो संघतिया
सबके जगा द
हथवा जगा द हथियरवा जगा द
करम जगा द आ बिचरवा जगा द
रोसनी से रचऽ नया जहनवा हो संघतिया
सबके जगा द
बीतऽता अन्हरिया के जमनवा हो संघतिया
सबके जगा द
------------------------------------
- गोरख पाण्डेय











अंक - 57 (8 दिसम्बर 2015)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मैना: भोजपुरी साहित्य क उड़ान (Maina Bhojpuri Magazine) Designed by Templateism.com Copyright © 2014

मैना: भोजपुरी लोकसाहित्य Copyright © 2014. Bim के थीम चित्र. Blogger द्वारा संचालित.