सुनी लऽ पुकार हो - अभिषेक यादव

जै हो माई शारदा
सुनी लऽ पुकार हो,
अरजी करेला माई
बेटवा तोहार हो।

नाही चाहि धन-मान
नाही चाहि सुख हो,
ऐतने गोहार माई
देले रह दुःख हो!

जब-जब झूठ बोली
मुँह दुखलाए लागे,
बाउर जे बात सुनी
कान से पराये लागे!

जदि करि लूट-पाट
जाने सभ जवार हो,
अरजी करेला माई
बेटवा तोहार हो।

रूप के घमंड करीं
मुँह दढ़ियाए लागे,
करीं जे भी हथजोड़ी
पेट बढ़ियाए लागे!

जांगर में घून लगे
बना दऽ बनिहार हो,
अरजी करेला माई
बेटवा तोहार हो।

छोड़ दी जे भोजपुरी
दाँत मुरचाए लागे,
सोझा करिं चपलूसी
उहो खिसियाए लागे!

आँख जे तरेरली तऽ
डाली दऽ मनार हो,
अरजी करेला माई
बेटवा तोहार हो।

चली जे भी ऊँच-नीच
गोड़ अंगिराए लागे,
खायीं जब मांसाहार
मुँह बसियाए लागे!

माहुर जे उगली तऽ
आवे ना डकार हो,
अरजी करेला माई
बेटवा तोहार हो।

करि जब नेतागिरी
देंह करियाए लागे,
फेसबुक पऽ टेग करीं
लोग अड़ियाए लागे!

पढ़ल-लिखल कम
हम बानि ढ़ेर गँवार हो,
अरजी करेला माई
बेटवा तोहार हो।

तन-धन हलूक बाकिर
मन गढ़ियाए लागे,
अभिषेक यादव जी के
चर्चा उड़ियाए लागे!

दसो नख जोड़ी के
राउर करिले गोहार हो,
अरजी करेला माई
बेटवा तोहार हो।
---------------











अंक - 51 (27 अक्टूबर 2015)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मैना: भोजपुरी साहित्य क उड़ान (Maina Bhojpuri Magazine) Designed by Templateism.com Copyright © 2014

मैना: भोजपुरी लोकसाहित्य Copyright © 2014. Bim के थीम चित्र. Blogger द्वारा संचालित.