बाड़ी मोरी अबही उमरिया

बाड़ी मोरी अबही उमरिया
आ विधाता दिनवा धई दिहलें ऐ राम...

सजना सेयान हम नदान,
त कइसे के गवनमां जाइब ऐ राम
...

बाबा मोरा अइसन निरमोहिया
न मन में विचरवा कइले ऐ राम
...

माई मोरा हिया के कठोर
त घरवा से निकाली दिहली ऐ राम
...

नइहर में कुछउ न सिखलीं
पिया के घर का करब ऐ राम
...

कुसुम रंग पेन्हली चुनरिया
त लाल रंग चादर मिलल ऐ राम...

डोलिया में हमके बिठाई के
कहार चार लागी गइले ऐ राम
...

सुसुकि-सुसुकि माई रोवेली
त सखी फुका फारी रोवे ऐ राम

धनी अब भइली ससुरइतीन
लउटी फिर न आइब ऐ राम
...

दास ऐ कबीर, निर्गुण गावेलन
गाके समझावेले ऐ राम...

अंक - 48 (6 अक्टूबर 2015)

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