सम्पादकीय: अंक - 42 (25 अगस्त 2015)

भोजपुरी कऽ सवाल: कमजोर काँहे भोजपुरी

भोजपुरी भारत के सभसे पुरान भाखन में से एगो भाखा बे जेवना कऽ इतिहास सोझा-सोझी देखल जाओ तऽ बारह सौ बरिस कऽ बा। आठवीं सदी कऽ चौरंगीनाथ जी से ले के आजू के बेरा ले केतने पानी गंगा अउरी सरजू में बहि गइल बा अउरी इनकी पानी कऽ हर धार भोजपुरी भाखा के गमक से सोन्हाइल मिल जाई बाकिर भोजपुरी आज बेकस नजर आवत बे। जेवन भोजपुरिया लोग कबो अपनी संस्कृति अउरी भाखा के ले के छाती चाकर कइले रहस ओह लोग के नजरी में भोजपुरी आज पिछुअइला कऽ निसानी हो गइल बे अउरी घूमा-फिरा के लोग एसे जान छोड़वे चाहत बाड़े। लोगन कऽ सुभाव अउरी बेवहार देखि के सभका मन में ई सवाल उठेला कि भोजपुरी कऽ अइसन हाल काँहे हो गइल। ए सवाल कऽ जवाब खोजला पऽ कई दिसाइन जाए के परी। बहुते कारन बा। ओह कारनन में से एगो कारन बा आज कऽ कमजोर भोजपुरी साहित्य। 

एगो बेरा रहे कि भोजपुरी साहित्य बहुत बरियार रहे। जदि हिन्दी साहित्य पर धियान दिहल जाओ तऽ साफ-साफ लउकी कि हिन्दी साहित्य में निरगुन कऽ परम्परा सोगहगे भोजपुरी से उठा लिहल गइल बा। कबीरदास होखस भा रैदास होखस; धरनीदास होखस भा दरिया साहेब होखस; ई सभ लोग अउरी जाने केतने अउरीओ लोग भोजपुरी भा अवधी में लिखले बाड़ें। बाकिर आज भोजपुरी अउरी अवधी दूनू भाखा में साहित्य कमजोर हो रहल बा। अउरी साहित्यकार लो टूअर लेखा बेकस बा। केवनो भाखा कऽ प्रवक्ता ओह भाखा कऽ साहित्यकार होला अइउरी जब प्रवक्ते मरुआइल अउरी परेह भइल बा जेवना में केवनो रस नइखे तऽ भाखा के बा होई। 

पिछिला कुछ सालन में भोजपुरी में बहुते बा लिखाईल। जाने केतने उपन्यास, कबिता, काथा, लेख, नाटक औरी जेतना तरह के विधा बाडी सऽ सभ में लिखाईल बा। सैकड़न कऽ तदाद में किताब छपल बाड़ी सऽ लेकिन दुख ए बात बा कि ओमे से थोरही किताबन भा रचनन के केहू पढले बा अउरी बाकी सभ के सभ झांपी में धराइल बाड़ी सऽ अउरी उन्हनी के टाड़ लागत बा। ए रचनन पर बतकही तऽ बहुत दूर कऽ बात बा औरी जदि कहीं केवनो बतकही भइल बा तऽ खाली बड़ाई कऽ के लोग आपन-अपान काम छोड़ा ले ले बा। । एतरे भोजपुरी केवनो फायदा नइखे मिले वाला नोकसान भले हो जाओ। ए बेरा जरुरत बा कि भोजपुरी के रचल रचनन के लोगन के सोझा ले आवल जाओ अउरी उन्हनी पर इमानदार बतकही होखे।  
अंक - 42 (25 अगस्त 2015)

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