महापण्डित राहुल सांकृत्यायन - एगो महान जीवन यात्री

'घुमक्क्ड़ी' 
अगर एह सबद के अर्थ एगो वैचारिक अस्तर प देखल जाओ त इ सबद क बड़ा बरियार आ गूढ़ माने निकलत बा। जदि एह सबद के परिभाषा देखल जाओ त 'गतिशीलता' एकर मुख्य आसय होई, जवन जीवन में कब्बो रुके के ना कहेला। 
जिनगी के जियल आ ओकर जतरा कईल दुनु अलग-अलग पक्ष बा आ जे जिनगी के जतरा क लिहल ओकरा खाति इ जीवन मृत्यु खालि शब्दमात्र रह जाला, उ व्यक्ति अमर हो जाला। 

कुछ एइसने व्यक्तित्व रहे महापण्डित राहुल सांकृत्यायन जी के।

सैर कर दुनिया की गाफिल,जिंदगानी फिर कहां।

जिन्दगानी गर रही तो, नॊजवानी फिर कहां।

एही काव्यपंक्ति के आपन प्रेरणास्रोत मान के राहुल जी घुमक्कड़ी के आपन धरम बना के अमर हो गइनी। 

राहुल सांकृत्यायन एगो अइसन प्रतिभा के नाव ह जे देशहित अउरी आपन भाखा खाति जवन काम कइले रहनी उ मील के पाथर साबित भइल, खासकर के भोजपुरी के उत्थान खाति इहां के जोगदान बिसेस रुप से उल्लेखनीय बा। 
महान भाषाविद्, साम्यवादी विचारक, यायावर आ युगपरिवर्तन के महान साहित्यकार राहुल सांकृत्यायन जी के जनम उत्तर परदेस, पूर्वांचल के आजमगढ़ जिला के पन्दहा नामक गांव में ९ अप्रैल, १८९३ के 'केदरनाथ पाण्डेय' के रुप में भइल। राउर पिताजी श्री गोवर्धन पाण्डेय किसान के साथ साथ एगो धार्मिक बिचार वाला व्यक्ति रहनीं। बचपने में माई के मृत्यु के बाद इहां के पालन पोषण इहां के नानाजी, श्री रामशरण पाठक जी के घरे भइल। प्रारम्भिक शिक्षा गांव के मदरसा से सुरु भइल। छोटे पर भइल बियाह इहां खातिर एगो संक्रान्तिक घटना रहे, जेकर परिणाम इ भइल की राहुल जी लड़िकइए में आपन घर छोड़ दिहनी आ एगो मठ मे जाके साधु हो गईनी। 

बाकीर अपना यायावरी स्वभाव के कारन ओहिजा टिक ना पवनी आ चॊदह बरिस के अवस्था में कलकत्ता से आपन भारत भरमण सुरु क दिहनी।

अपना रचनाधर्मिता आ घुमक्कड़ी सुभाव के कारन रउवा जहां जहां गइनी, ओहिजु के भाखा, बोली, संस्कृति अउर समाज के गहन अध्ययन कइनी, आ ओहि आधार पर तमामन ग्रन्थन के रचना कइनी। 
दक्खिन भारत में रहला से इहां के "दामोदर स्वामी" के नाम मिलल, ओकरे बाद लंका में इहाँ के बौद्ध धर्म अपना लिहनी। तबसे इहां के नाम 'राहुल' (जवन महात्मा बुद्ध के लइका के नाम रहल) पड़ल। अउर सांकृत्य गोत्र के भइला के कारन, आगे के नाम 'सांकृत्यायन' भइल।

लगभग ३६ भाषा के जनकार राहुल जी कवनो नियमित शिक्षा त ना लिहले रहनीं, बाकीर अपने से भारतीय संस्कृति, वेद-पुराण, दर्शन, इतिहास आदि विषयन में विद्वान रहनी। बोद्ध धरम से सम्पर्क में अइला पर पाली, अपभ्रंश, सिंहली, प्राकृत, तिब्बती, चीनी, जापानी आ अउर भी कई गो भाषा सीखनी।
क्षेत्रीय भाषा खाति राहुल जी के सम्मान उहां के स्वाभाविक बिसेसता रहे, आ भोजपुरी जवन की उहां के माईभाखा रहे, ओहसे त बिसेस प्रेम रहे, भोजपुरी में भी कई गो रचना कइले रहनीं, जवन समाज में फइलल बुराई, सामाजिक उन्माद, दहेज बिरोध, लइका लइकी में भेदभाव आ मेहरारुन के समाज में खराब स्थिति पर केन्द्रित रहे। भोजपुरी मे इहां के लिखल नाटक ढेर लोकप्रिय भइल जेइमें, मेहरारुन के दुरदसा, जोंक, नइकी दुनिया, जपनिया राछस, ढुनमुन नेता, देस रक्षक, जरमनवा के हार निहचय, प्रमुख रहे जवन दू भागन में परकासित भइल।
भोजपुरी खाति राहुल जी के जोगदान अतुलनीय बा।उहां के इ सिद्धान्त रहे की अपना माईभाखा के सम्मान कइल अपना माई के सम्मान बा। राहुल जी ओह समय में भोजपुरी भाषी लोग खाति एगो अगुवा आ प्रेरक मसाल जइसन रहनीं, जे ओह बेरा भोजपुरी के बिकास खाति चिंतित रहे। भोजपुरी रचनकारन के मनोबल बढावे खाति इहां के "भिखारी ठाकुर" के भोजपुरी के शेक्सपियर आ भोजपुरी के हीरा कहके सम्मान दिहनी।
१९४७ में गोपालगंज, बिहार में भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्षता कइनी। राहुलजी के आवाह्न पर महेन्दर शास्त्री जी १९४८ में भोजपुरी के पहिला पत्रिका "भोजपुरी" निकलनीं, आ ओकरा बाद भोजपुरी पत्रिकन के तांता लाग गइल।
भोजपुरी के आठवां सूची में लियावे खाति पहिला परयास उहेके कइले रहनी।
भोजपुरी नाटकन में लिखल उहां के गीतन में एगो बड़हन आ गहीर संदेश समाज खाति होत रहे ...एगो 
"एके माई बपवा से एके ही उदरवा से,
दूनू के जनमवां भइल रे पुरूखवा।
पूत के जनमवा में नाच आ सोहर होला,
बेटी के जनम परे सोक रे पुरुखवा।
धनवा धरतिया पर बेटवा के हक होला,
बिटिया के कुछुवो ना हक रे पुरुखवा।"
राहुल जी गुलामी के दॊर में समाज में फइलल बुराई, अंधविश्वास, रूढिवादी बिचारन, अर्थबेवस्था अउर राजनीति के संक्रमण के खिलाफ आपन अवाज बुलंद कइले रहनी, एकरा साथे साथे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी आपन पूरा जोगदान दिहनीं। राजेन्दर बाबू के साथे आन्दोलन में भाग लेके, छपरा में बाढ़ से पीड़ित लोग के सेवा कइनीं आ एही क्रम में ६ महीना बक्सर अउरी डेढ़ महीना हजारीबाग जेल में रहनी।
रउवा अंदाजा लगा सकेनी की एतना उपनाम, पदवी जइसे कि महापण्डित, यायावर, अन्वेषक, कथाकार, आलोचक, नाटककार, त्रिपिटकाचार्य, निबन्ध लेखक, युगपरिवर्तन साहित्यकार आ ना जने अइसने केतना अउर खाली एक व्यक्ति खतिर बा, उ केतना बड़हन विद्वान होई, आ वास्तव में राहुल जी एह सब के समान रूप से अधिकारी रहनी।
भाषा आ साहित्य के बारे में रउवा कहले बानी- "भाषा अउर साहित्य, धारा के रुप में चलेला,फरक खालि एतने बा जे नदी के हमनी के देस के पृष्ठभूमि के तरे देखल जाला जबकि भाषा, देस आ भूमि दूनू के पृष्ठभूमि खाति आगे बढ़ेले।"
राहुल जी के रचना में मेरी लद्दाख यात्रा, घुमक्कड़ शास्त्र, वोल्गा से गंगा, कनैला की कथा, सतमी के बच्चे, मेरी जीवन यात्रा, दिमागी गुलामी, आज की राजनीति, बुद्धचर्या, धम्मपद, जय यॊधेय, अउर कई गो प्रमुख बा।
राहुल जी अपना जीवन में तीन गो बियाह कइले रहनी, पहिला बचपन में परिवार द्वारा, दूसरा मास्को में रहला पर ओहिजु भारत-तिब्बत विभाग के सचिव 'लोला येलेना 'नामक महिला से प्रेम विवाह जेसे इहां के 'राहुलोविच' नामक पुत्ररत्न के प्राप्ति भइल। ओकरे बाद १९५० में रुस में संस्कृत शिक्षक के पद छोड़ के नैनीताल आ गइनी आ ओहिजु से वापस दार्जलिंग आके तीसरा बियाह कइनी। 
मधुमेह से ग्रसित भइला से दार्जिलिंग में ही १४ अप्रैल, १९६३ के एह संसार के छोड़ के दूसरे दुनिया के यात्रा पर चल दिहनी।
महापण्डित राहुल संकृत्यायन जी के १९५८ में साहित्य अकादमी पुरस्कार, अउर १९६३ में पद्म भूषण से सम्मानित कइल गइल। 
इहां के नाम पर भारत सरकार के मानव संसाधन एवं विकास मन्त्रालय के तरफ से हर साल सर्वश्रेष्ठ यात्रा वृतान्त लेखक के 'महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार' देहल जाला!
हमनी के ओर से ए महान व्यक्ति आ महान साहित्यकार के कोटि कोटि श्रद्धांजलि.......!
--------- आदित्य दूबे 

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